जंग-ए-आजादी के क्रांतिकारी चौधरी जबरदस्त खां के सामने गोरों की फ़ौज ने टेक दिए थे घुटने, तीन बार टूटा अंग्रेजों का फांसी का फंदा, तब गोली मारकर किया शहीद

जंग-ए-आजादी के क्रांतिकारी चौधरी जबरदस्त खां के सामने गोरों की फ़ौज ने टेक दिए थे घुटने, तीन बार टूटा अंग्रेजों का फांसी का फंदा, तब गोली मारकर किया शहीद
HIGHLIGHTS:

1. 1857 की क्रांति के नायक ने हापुड़ और बुलन्दशहर में संभाली थी कमान
2. हापुड़ के अमर शहीद की यौम-ए- पैदाइश आज, पेश की खिराज ए अकीदत, ज्ञान और वीरता के कायल थे अंग्रेज

मुल्क (देश) की आजादी में लाखों क्रांतिकारियों ने जान की कुर्बानी दी है। इसके बाद मुल्क को आजादी मिली है। मगर, इसमें से ही एक हैं हापुड़ के चौधरी जबरदस्त खां, जिनके सामने गोरों की फौज ने भी घुटने टेक दिए थे। आज यानी एक मई को को देश के अमर शहीद चौधरी जबरदस्त खां की यौम-ए- पैदाइश (जयंती) है। उनको हापुड़ से लेकर देश भर के स्वतंत्रता प्रेमी खिराज ए अकीदत पेश (श्रद्धांजलि दी) दे रहे है। मगर, तमाम लोग ऐसे भी हैं, जो हजारों क्रांतिकारियों के बारे में नहीं जानते हैं। देश की आज़ादी के लिए जान न्योछावर करने वाले क्रांतिकारी चौधरी जबरदस्त खां 1857 की पहली क्रांति के वीर हैं। जिनकी शहादत ने पूरी देश को आज़ादी के पथ पर अग्रसर किया।उन महान क्रांतिकारियों में हापुड़ के मोहल्ला भंडा पट्टी निवासी चौधरी ज़बरदस्त खां और उनके भाई नवाब उल्फत खां का नाम सदा गर्व से लिया जाएगा। उन्होंने क्रांति के साथ ही अंग्रेजों की हापुड़, गाजियाबाद, बुलंदशहर आदि शहरों की संचार व्यवस्था ध्वस्त कर दी थी।

10 मई 1857 के विद्रोह की चिंगारी से भाप और ज्ञान की लौ तक
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल मेरठ छावनी के 85 हिन्दुस्तानी सैनिकों ने अंग्रेजी कारतूसों में चर्बी का बहिष्कार कर बजाया था। उसी आंदोलन की लहर ने हापुड़ तक घुसकर चौधरी ज़बरदस्त खां को आजादी का नायक बनाया। उनकी तलवार की धाक के आगे “गोरों की फौज ने घुटने टेक दिए थे। यह कहानी आज भी हापुड़ के लोकगीतों में ज़िंदा है। 

ब्रिटिश दमन और शहीद धर्म
संघर्ष की आग छिड़ते ही अंग्रेज अफ़सर हुलसन ने 14 सितंबर 1857 को झूठे मुकदमों के आधार पर ज़बरदस्त खां और उल्फत खां को फांसी पर लटका दिया। तीन बार फांसी का फंदा टूटने के बाद, कठोर हुक्मानामे के चलते उन्हें गोली से शहीद कर दिया गया। उनके परिवार की बुलंदशहर रोड स्थित जायदाद को भी जब्त कर लिया। परिवार के नौकर अब्दुल रहमान ने चार वर्षीय अब्दुल्ला को कश्मीर ले जाकर पाला। वहाँ रहमान ने उसे शिक्षा के उच्च मानकों पर लाकर बैरिस्टर बनाया। हालांकि, अब्दुल्ला हापुड़ लौटा, मेरठ लॉ कॉलेज से बैरिस्टर की डिग्री हासिल कर अंग्रेज़ी सरकार के सामने मुकदमा जीता और खानदानी जमीन वापस दिलवाई। आज वही जमीन ग्राम इमटौरी में परिवार का संरक्षित गौरव है।

शहीद स्मारक और विरासत के प्रहरी
शहर के सिकंदर गेट पर स्थित चौधरी ज़बरदस्त खां का स्मारक है। यहां हर 10 मई और राष्ट्रीय पर्वों पर मोमबत्ती-पूजापुष्प अर्पित किए जाते हैं। डॉ. मरगूब त्यागी ने निर्मित विशाल जबरदस्त खां गेट, जो आगंतुकों को उनकी अमर कथा का अनुभूति कराता है। फाइटर्स मेमोरियल सोसायटी, हापुड़’ एवं ’1857 स्वतंत्रता संग्राम यादगार समिति’ द्वारा 1975 से प्रतिवर्ष आयोजित शहीद मेला — जो 10 मई से एक माह तक चलता है और देशभर में अद्वितीय भी है। 

आज हमारी जिम्मेदारी: स्मृति को सजीव रखना
चौधरी ज़बरदस्त खां ने अपना बलिदान समाज को यह सिखाने के लिए दिया कि स्वतंत्रता केवल युद्ध की गति नहीं, बल्कि सामाजिक विश्वास, न्याय और समानता की नींव है। उस अमिट विरासत को बचाए रखने के लिए हमें स्थानीय अभिलेखों और मौखिक परंपराओं को संजोना है। शहीद स्मारकों की रक्षा और संवर्द्धन करना होगा। युवा पीढ़ी को इन वीर गाथाओं से जोड़ने की जरूरत है। स्वतंत्रता का असली अर्थ समझाते हुए दिन-प्रतिदिन उनके आदर्शों पर चलना है। उनका कहना था कि “जब मिट्टी में आती है शौर्य की गठरी, तो इतिहास खुद आकर सलाम करता है।”